Friday 24 July 2015

नैतिक के सहारे बेवकूफी

कहने को तो बङे है, है भी। कुछ लोग उन्हें दिलेर कहने से भी नहीं चूकते, वो किस हद तक दिलेर है में जानता हूँ , उनका दिलेर होना मुझे नहीं अखरता पर उनके द्वारा दिलेरी में फेंके गये हवाई ख्याल उन्हें कितनी आत्मसंतुष्टि ओर ख्याति दिलाते है इसको लेकर शंकित हूँ ! वे लगभग हमेशा(मैंने देखा है अधिकतर) या तो अपनो को बेवकूफ बनाते है या बेवकूफ समझते है।

बिना जाने बेवकूफ बनाना एक अलग और आसान चीज है। कोई भी इसे निभा देता है।
मगर यह जानते हुए कि मैं बेवकूफ बनाया जा रहा हूँ और जो मुझे कहा जा रहा है, वह सब झूठ है- बेवकूफ बनते जाने का एक अपना मजा है। यह तपस्या है। मैं इस तपस्या का मजा लेने का आदी हो गया हूँ। पर यह महँगा मजा है - मानसिक रूप से भी और इस तरह से भी। इसलिए जिनकी हैसियत नहीं है उन्हें यह मजा नहीं लेना चाहिए। इसमें मजा ही मजा नहीं है - करुणा है, मनुष्य की मजबूरियों पर सहानुभूति है, आदमी की पीड़ा की दारुण व्यथा है। यह सस्ता मजा नहीं है। जो हैसियत नहीं रखते उनके लिए दो रास्ते हैं - चिढ़ जाएँ या शुद्ध बेवकूफ बन जाएँ। शुद्ध बेवकूफ एक दैवी वरदान है, मनुष्य जाति को। दुनिया का आधा सुख खत्म हो जाए, अगर शुद्ध बेवकूफ न हों। मैं शुद्ध नहीं, 'अशुद्ध' बेवकूफ हूँ। और शुद्ध बेवकूफ बनने को हमेशा उत्सुक रहता हूँ।

Monday 13 July 2015

स्व चिंतन

यदि मानव अपने जीवन में उन्नति चाहता है उसे सबसे पहले आत्मनियंत्रण करना सीखना होगा। अपने मन को वश में रखे और स्वेच्छानुसार नताएं। मन की चंचलता मनुष्य की प्रगति में, उसकी उन्नति में सबसे बडी अवरोधक है। आत्म संयम के अभाव में सारी योजनाएं व्यर्थ हो जाती है।

Wednesday 3 June 2015

विदाई

विवाह का दृश्य बड़ा दारुण होता है। विदा के वक्त औरतों के साथ मिलकर रोने को जी करता है। लड़की के बिछुड़ने के कारण नहीं, उसके बाप की हालत देखकर लगता है, इस देश की आधी ताकत लड़कियों की शादी करने मे जा रही है। पाव ताकत छिपाने मे जा रही है - शराब पीकर छिपाने में, प्रेम करके छिपाने में, घूस लेकर छिपाने में ... बची पाव ताकत से देश का निर्माण हो रहा है, - तो जितना हो रहा है, बहुत हो रहा है। आखिर एक चौथाई ताकत से कितना होगा।
यह बात मैंने विश्वविद्यालय के विदाई समारोह के दरम्यान सहपाठियों से कह रहा था, “तुम लोग क्रांतिकारी तरुण-तरुणियां बनते हो। तुम इस देश की आधी ताकत को बचा सकते हो। ऐसा करो जितनी लड़कियां विश्वविद्यालय में हैं, उनसे विवाह कर डालो। अपने बाप को मत बताना। वह दहेज मांगने लगेगा। इसके बाद जितने लड़के बचें, वे एक-दूसरे की बहन से शादी कर लें। ऐसा बुनियादी क्रांतिकारी काम कर डालो और फिर जिस सिगड़ी को जमीन पर रखकर तुम्हारी मां रोटी बनाती है, उसे टेबिल पर रख दो, जिससे तुम्हारी पत्नी सीधी खड़ी होकर रोटी बना सके। बीस-बाईस सालों में सिगड़ी ऊपर नहीं रखी जा सकी और न झाडू में चार फुट का डंडा बांधा जा सका। अब तक तुम लोगों ने क्या खाक क्रांति की है।”
छात्र थोड़े चौंके। कुछ ही-ही करते भी पाये गये। मगर कुछ नहीं।

Wednesday 27 May 2015

निंदा रस


सुना है लुगाई जात को दूसरों की निंदा करने या सुनने में परम सुख की अनुभूति होती है, में इसे बेतुका जुमला मानता था, पर समय के साथ ये धारणा सत्य लगने लगी है इसमें तो कोई दोहराय नहीं कि पुरुषों के बनिस्पत स्त्रियों में निंदा रस का शोक ज्यादा होता है।
एक स्त्री किसी सहेली के पति की निंदा अपने पति से कर रही है. वह बड़ा उचक्का, दगाबाज आदमी है, बेईमानी से पैसा कमाता है, कहती है कि मैं उस सहेली की जगह होती तो ऐसे पति को त्याग देती। तब उसका पति उसके सामने यह रहस्य खोलता है कि वह स्वयं बेईमानी से इतना पैसा कमाता है, सुनकर स्त्री स्तब्ध रह जाती हैक्या उसने पति को त्याग दिया? जी हां, वह दूसरे कमरे में चली गई।

कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हममें जो करने की क्षमता नहीं है, वह यदि कोई करता है तो हमारे पिलपिले अहंकार को धक्का लगता है, हममें हीनता और ग्लानी आती है, तब हम उसकी निंदा करके उससे अपने को अच्छा समझकर तुष्ट होते हैं।
सुबह जब उसके साथ बैठा था तब मैं स्वयं निंदा के काला सागर में डूबा उतरा था, कलोल कर रहा था, बड़ा रस है न निंदा में। सूरदास ने इसलिए इसे निंदा सबद रसाल कहा है।
अब कुछ तटस्थ महसूस कर रहा हूँ।

अब आप तर्कों के जाल में मुझे उलझाने की कोशिश करोगे ओर कहोगे "भारतीय दर्शन में पूज्य नारी चरित्र की दुर्दशा कर रहे हो"।
यह कोई अचरज की बात नहीं है । हमारे यहाँ जिसकी भी पूजा की जाती है उसकी दुर्दशा कर डालते है। यही सच्ची पूजा है । नारी को भी हमने पूज्य माना है और उसकी जैसी दुर्दशा की सो तुम जानते ही हो।"

Saturday 23 May 2015

देव्य आशीष

सिद्ध श्री भभूताजी के नव निर्मित देवालय में देवाशीष,आशीर्वाद के लिये में श्रद्धानवत हूँ।
नानाजी द्वारा इस प्रतिष्ठित अवसर पर मूर्ति स्थापित करने व प्रथम पूजा का लाभ लेने के साथ ही फलदायी बोली का लाभ उठाने पर शुभाशीष। दान-पुण्य के अवसर की सही पहचान कर सुखद समय पर दान करने पर में नानाजी के प्रति स्नेहलित हूँ।
शुद्ध अंत:करण से देवालय को दिया दान अनंत सुखदायी और फलदायी होता है
दान से बढ़कर श्रेष्ठ कोई कार्य नहीं। धन प्राप्ति के लिए मनुष्य प्राणों का मोह त्याग दुष्कर कठिन कार्य करता है। अपनी मान-मर्यादा भुलाकर धन कमाता है। कष्ट से कमाए धन का ही दान संसार में सर्वश्रेष्ठ है।
ऐश्वर्य का सुखद अनुभव समय के साथ शुभ कर्मों के फलों का भोगी बनने से होता है ना की भोगवादी होने से।श्रद्धा, भक्ति, ज्ञान,अलोभ, क्षमा और सत्य की तरह ही शास्त्रों में दान-पुण्य को उच्च स्थान दिया है । दान मोह विरक्ति की अगली कङी है।

मंदिर में भक्तों व उपासकों द्वारा अर्चन करना, प्रणाम करना, मन वचन से आशीष मांगने का फल देवालय में मूर्ति स्थापक को भी होता है, ऐसा मौका सुलभ होना ओर उसका भागी बनाना देवय शक्ति के आशीष के बिना असंभव है।ऐसे पुण्य का फल सभी परिवारजनों को मिलता है कहीं न कहीं में भी इस फल का भोक्ता हूँ । में नतमस्तक हूँ उस अलौकित शक्ति के प्रति जिसने ऐसा होना संभव किया।

Wednesday 20 May 2015

गौ माता: भाग्य विधाता

मास्टर जी गाय पर निबंध नहीं लिख पाए(जैसा कल के अखबार में हमाने समाचारों में पढा); हाँ आजकल तो बीस-पच्चीस बरस बाद औलादें अपने बुढें माँ-बाप को भूल जाती है,बिचारी गाय को कोन याद रखे!
मेरा मन हुआ जा रहा है गौ मैया पर,सोच रहा हूँ लगे हाथ में भी क्यों न ट्राई मार लूँ।गौ माता पर में ताजा निबंध लिखकर ओर आप इसको पढकर गऊ माता को सच्ची श्रद्धांजलि देंगे।
तीसरी-चौथी के परचे में गौ-माता पर निबंध आता था लेकिन तब की बातें किसे याद, फिर भी आप निबंध पढ कर ये तय करें कि इस परीक्षा हम फेल हुए थे या पास।

गाय एक उपयोगी ओर भारतीय पालतू जानवर है जिसका गरीब,आम आदमी,व्यापारी,नेता,बाबा लोग अपनी तरह से इस्तेमाल करने को स्वतंत्र है।आम शहरी उसे माता कहता है लेकिन सुबह-सुबह दूध दुह कर गली में हाक देता है बैचारी गाय मा गलियों में इधर उधर मुह मारती फिरती है, शाम को उसे फिर मा की याद आती है ओर वह बछङा लेकर पीछे जाता है बछङे के रम्भाने की आवाज से भोली गाय पुन: घर लौट आती है ओर दूध देती रहती है। दूध सूखने पर उसे आवारा जानवर समझकर बाजार में विदा कर दी जाता है, वहा कांजी हाउस वाले घेरकर गौशाला में भेज देते है,वहा उसकी हालात वृंदावन की विधवाओं जैसी है क्योंकि उसके हिस्से की घास कारकून चर जाते है।
नैतागणों की बदौलत देश में बङे-बङे गौरक्षा आंदोलन हुए,कई नेताओं की नेतागिरी चमक गई,कुछ की तोद फलती-फूलती चली गई पर गाय दिन ब दिन कंकाल तंत्र होती गई ,उनको गौ रक्षा की याद तब आती है जब वे सत्ता से बाहर हो जाते है,लगभग सभी दलों की 'चुनावी वादों की बोरी में' गाय भी शामिल होती है पर,कुर्सी मिलते ही मजदूर,गरीब,किसान की तरह गाय को भी भूल जाते है।
बाबा लोग गरीब को गाय से दूर करने के लिए गौ मास को बंधित करने हेतु आंदोलनरत है, वे गाय को पवित्र व पुण्य पशु बताते नहीं थकते, खुद के हाथों सेवा करना तो दूर की बात साक्षात दर्शन करना भी उचित नही समझते,वे अपने भाषणों,पोस्टरों,कलेंडरो ओर हार्डिंगस में गो माता को महान व हष्ट-पुष्ट बनाते है।आजकल बाबा लोगों अपने प्रवचनों की तरह गौमूत्र को बेचते देखे जा सकते है तब भोली-भाली जनता इन बाबाओं को गाय से भी पवित्र समझ बैढती है।
व्यापारियों ने गऊ के शुद्ध घी के कारखाने लगवाकर गोमूत्र बेचने वाले बाबाजी से अपने घी का प्रचार करवाया, जहाँ देखो वहा उसी ब्रांड का घी खरीदा जा रहा है, बाजार गाय के घी से भरा हुआ है, समझ नहीं आता इतनी गायें बची ही नहीं तो घी कहा से आता है।
कहते है पृथ्वी गाय के सींग पर टिकी है तो कहीं गुस्से में गौ मैया ने सींग से धरती को गिरा दिया तो हमारा क्या होगा? ये जानते हुए भी विराट ह्रदय गौ माता इस भारत की भाग्य विधाता बनी हुई है।

Tuesday 19 May 2015

गुरुजी ओर न्याय

जुगाङ करने पर कल का अखबार आज पढने को नसीब हुआ। बङा खुश था पुराना अखबार पाकर भी, पर खुशी क्षणिक थी पहली खबर पूरी पढ ही नहीं पाया था की नजर अलग फ्रेम की हुई एक टिप्पणी पर पङी, उसका शीर्षक था 'गुरुजी ही ले डूबेंगे चेलों को'।
खबर पढने से पहले दिमाग में आया भारत तो गुरुओं का देश है फिर भी ऐसा क्या संकट आया गुरुजी पर,आगे देखा तो कहानी समझ में आयी, घटना कुछ यूँ थी

"जम्मू कश्मीर में एक गांव में सरकारी स्कूल के गुरुदेव पर बच्चों के अभिभावकों ने कोर्ट में केस कर दिया की गुरुजी ही बच्चों का भविष्य तबाह कर रहे है।
कोर्ट में जज साहब ने गुरुजी का ज्ञान परखने के लिए गणित का सवाल हल करने को कहा, गुरुजी बोले भरी अदालत में हिचक रहा हूँ। जज साहब ने गुरुजी के तर्क को सुना ओर आगे आदेश दिया 'चलो गाय पर निबंध लिखकर बताओ' गुरुजी बगलें झाकने लगे...... ओर गाय पर एक शब्द भी नहीं लिख पाये। माननीय जज ने फेसला सुनाया  'कलंक है ऐसे गुरु! इस भारत भूमि पर, राज्य सरकार जल्द ही एक कमेटी गठित कर ऐसे सभी अध्यापको को चिन्हित कर तुरंत प्रभाव से सेवा बर्खास्त कर दे।"

मेरे अखबार पाने की खुशी तुरंत ही रंज में बदल गयी, फिर भी मुझे बच्चों के साथ न्याय होने पर शंका है क्योंकि देश का कानून अँधा है और उसके हाथ लम्बे है, अंधेपन के कारण उसके लम्बे हाथ कई बार मुज़रिम की गर्दन पकड़ने के बजाये उसकी जेब में चले जाते है

Monday 18 May 2015

वक्त की मजबूरी

"टाइम पास कर रहा हूँ, टाइम पास हो रहा है" जहाँ-तहाँ कहा सुना जा सकता है। पर में कोशिश कर रहा हूँ कुछ ऐसा ही करने की, पर लगता है शायद ही सफल हो पाऊँ ।
वक्त(टाइम) का तो क्या? वो तो पास होता ही होता है चाहे हम ढांन लें की इसे फेल करके ही चेन की नींद सोना है फिर भी। कितनी अजीब सी बात है चॉद ओर मंगल पर शेर-सपाटा वाला ये इंसान वक्त के सामने बोना नजर आ रहा है, इन दिनों में गुजर रहा हूँ कुछ ऐसे ही हालात से पर करु तो क्या करु मजबूरी है ये मेरी।
ओर यही मजबूरी इंसान को वक्त जाया(टाइम पास) करने को मजबूर करती है मजे की बात तो ये है कि मजबूर व्यक्ति मजबूरी में अपना ज्ञान,विवेक,शील सब कुछ खो देता है या खोने को तैयार हो जाता है। सुना है "मजबूरी का नाम महात्मा गांधी होता हैं" पर मुझे भी शंका है गांधी जी भी देश को गुलामी की बेङियों से मुक्त कराने को इतने मजबूर नहीं होंगे जितना इन दिनों में!
इधर-उधर पूछा,कुछ मित्रों को फोन घुमाया, पता लगाने की कोशिश की पर कोई नहीं बता पाया कि मुझसे टाइम पास क्यों नहीं हो रहा।
कुछ चहेतों ने जानना चाहा कि,ऐसी क्या आन पङी तुझ पर जो तू इस कीमती मोती को यूँ लुटाने की सोच रहा है, उन्हें शंका थी कि में किसी दुविधा में हूँ , मेरा एक अजीज गुच्छा होकर मुझे लताङ रहा था तभी मुझे उसमें अपनेपन का भाव नजर आया क्योंकि
जिन्हें ग़ुस्सा आता है वो लोग सच्चे होते हैं
मैंने झूठों को अक्सर मुस्कुराते हुए देखा है...

फिर सोचा अभी तो में तुच्छ आदमी हूँ ,ये मेरी अयोग्यता का प्रतीक है,वैसे भी जिसने कलम घसीटने के अलावा कुछ किया ही न हो उसमें ऐसा काम करने की खूबी भला कैसे आ सकती है?

काफी कुछ सोचा जाने के बाद ध्यान आया कि कौन है भला जो इसे जीतने की चेष्टा करता हो, इसे काटने की कूव्वत रखता हो यदि जाने अनजाने किसी में ऐसी सिद्धि करने ठानी होगी तो निश्चय ही वह गर्त की ओर गया है। वक्त को सलाम है! जिस किसी ने इसका दामन थामा है वह सर्वदा उन्नति के शिखर पर गया है।

Sunday 17 May 2015

दुविधा का द्वंद्व

कभी कभी मन करता है स्त्रियों पर कुछ लिखूँ इस पर कुछ लिखा तो कुछ मित्र मुझे फेमिनिस्ट समझ लेते हैँ।
फिर प्यार पर लिखता हूँ तो मित्र महिला मित्र के बारे मेँ पूछते हैँ।
पालिटिक्स पे लिखता हूँ तो सेकुलर भौँकने लगते हैँ
समकालीन गतिविधियोँ पे एक दिन व्यँग कस दिया तो कलमघसिटू दल पीछे पड गया ।
अब प्रश्न यह है कि क्या लिखूँ
किस पर लिखूँ?'

Wednesday 13 May 2015

चर्चा के चर्चें

में अपनी सहधर्मिणी मुखातिब था
बातों ही बातों में चर्चा शादी के अच्छेपन, सजक हमसफर पर हो चली।
प्रसंगानुसार मैंने अपनी दुष्ट आदत के मुताबिक कहा - इसमें परेशान होने की क्या बात
है। देश में अच्छी शादियाँ लड़की भगाकर ही हुई हैं । कृष्ण ने रुक्मणी का हरण किया था और अर्जुन ने कृष्ण की बहन सुभद्रा का । इसमें कृष्ण की रजामन्दी थी। भाई अगर कोआपरेट करे तो लड़की भगाने में आसानी होती है।
पर इस लौक के वर्तमान में 24-2 5 साल के लड़के-लड़की को भारत की सरकार बनाने का अधिकार तो मिल चुका है, पर अपने जीवन-साथी बनाने का अधिकार नहीं मिला।

वे नहीं जानती थी कि मैं पुराण उनके मुँह पर मारूँगा । संभलकर बोली, "भगवान कृष्ण की बात अलग है, वे तो भगवान है!" मैंने कहा, "हाँ, अलग तो है । भगवान अगर औरत भगाये तो वह बात भजन में आ जाती है साधारण आदमी ऐसा करे तो यह काम अनैतिक हो जाता है।
उसे मेरा शास्त्रसम्मत उदाहरण देकर समझाना नागवार गुजरा उसने 'मेरा मनुष्य जाती का होने' पर भी जताया ओर वे कहने लगी, "आप हमेशा उल्टी बातें करते हैं-रीति, निति, परम्परा,विश्वास क्या कुछ नहीं है ?

विश्वास और परम्परा के टूटने में बड़ा दर्द होता है उसमें भी झूठे विश्वास का भी बड़ा बल होता है। उसके टूटने का भी सुख नहीं , दुःख होता है।

जय हो देवी........

Sunday 10 May 2015

मीडिया की चलनी में कितने छेद

मीडिया की चलनी में कितने छेद !
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मेरा शहर एक छोटा सा शहर है. लेकिन यहां दो सौ से अधिक दैनिक और साप्ताहिक अखबार पंजीकृत हैं. इनमें से आठ-दस को छोड़ कर बाकियों की शक्ल सब नही देख सकते. इन अदृश्य अखबारों के दो मुख्य धंधे हैं. पहला, ये राज्यशासन से अपने कोटे का अख़बारी कागज़ लेते हैं और कुछ दाम बढ़ाकर उसे बड़े अखबारों को बेच देते हैं. दूसरा, ये बीच-बीच में किसी अफसर, नेता या ठेकेदार के तथाकथित भ्रष्ट आचरण पर रिपोर्ट तैयार करते हैं. अखबार की प्रति लेकर संबन्धित व्यक्ति के पास पहुंचते हैं. उस दिन की सारी प्रतियों के दाम वह व्यक्ति चुका देता है. अखबार को जनता के बीच तक जाने की जहमत नहीं उठानी पड़ती. केबल नेटवर्क के समाचारों में आमतौर पर वही समाचार होते हैं जो या तो इरादतन बनाये जाते हैं या जिनका किसी के हित-अहित से कोई लेना देना नहीं होता.

पर यह तो हांडी के चावल का एक दाना भर है. आप राष्ट्रीय परिदृश्य पर नज़र डालिए. अखबारों और चैनलों की भीड़ है. आप भी चकित होते होंगे जब एक ही नेता या पार्टी या सेलिब्रिटी को एक ही समय में कुछ अखबार/चैनल महान बता रहे होते हैं और कुछ अधम और पापी. चुनावों के दौरान मीडिया जिन लोगों का नकली जनाधार बनाता है, उनसे उसके रिश्तों को किस आधार पर नकारा जा सकता है. मीडिया नकली लोगों को असली की तरह पेश करता है. जिन व्यक्तित्वों के पीछे देश की जनता पागल की तरह जाती है, उनकी छवियों के निर्माण का काम मीडिया ही करता है, और यह काम वह धर्मार्थ नहीं करता.

दरअसल हमारे वर्तमान अर्थकेन्द्रित समाज में मीडिया एक उद्योग बन चुका है. इसके सारे घटक पूंजीपतियों की मिल्कियत हैं. पूंजी की अपनी आकांक्षाएँ होती हैं. वह अपनी नैतिकता और सामाजिकता खुद गढ़ती है. पूंजी को कुरूपता-दरिद्रता पसन्द नहीं आती क्योंकि वहां उसका प्रवाह बाधित होता है. इसीलिए हमारा मीडिया उस मायालोक को रचता है, जिसकी तेज़ रोशनी आपकी आँखों को चौंधिया दे. उसके पास तकनीक है. इस तकनीक से वह प्रकाश के वृत्त को मनचाहे ढंग से घुमाता रहता है. इसके पास यह कौशल है कि वह जिन चीज़ों को चाहे उन्हें गहरे अंधकार में डुबा दे।
डुबा दे।

दरअसल समस्या लोकतंत्र के पहले दूसरे या चौथे खम्बे के क्षरण की नहीं है, यह समाज के हर कोने में प्रतिबिंबित होती है।
समस्या हमारी मानसिकता की है ! बेईमानी और धूर्तता हमारे खून में है । समाज का कोई भी वर्ग उठाकर देख लीजिए शासन और शक्ति मिलते दुरुपयोग शुरु हो जाता है । अपवाद स्वरुप भी कोई उदाहरण मिलना मुश्किल है क्या शहर क्या गांव। ईमानदारी तभी तक अस्तित्व में होती है जबतक बेईमानी कि अवसर न मिल जाय !!

Friday 8 May 2015

आत्मनिर्भरता ही आत्मसम्मान है

आत्मनिर्भरता:-

संसार में आत्मनिर्भरता से बढकर कोई गुण नहीं है। हम इस सम्मान की रक्षा तब तक नहीं कर सकते ,जब तक हम स्वयं आत्मनिर्भर नहीं बन जाते। यदि हम इतना निश्चय करलें यदि जीना है तो आत्मनिर्भर होकर ,न कि दूसरे व्यक्ति की दया पर ,तो निश्चय ही हमारे अंदर असीम शक्तियां उजागर हो सकती है।

       में अपने परिवेश में देख, महसूस कर रहा हूँ कि व्यक्ति की आत्मनिर्भरता अन्य शील गुणों को केन्द्रित करती है,उपलब्धियों के द्वार खोलती है साथ ही महत्वाकांक्षी भी बनाती है, आवश्यकता है केवल अपने मन को आत्मनिर्भर बनाने की।
आत्मनिर्भर व्यक्ति मुसीबतों एवं बाधाओं को देखकर पीछे नहीं हटता,अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अकेला ध्रुव के समान अटल रहता है क्योंकि उसे अपनी अंतर्निहित शक्तियों,कुशलता,कर्मशक्ति पर पूर्ण विश्वास है।
    तो चलिए अपनी सहायता खुद करें, अपनी प्रगति स्वयं तय करें, अपना सामर्थ्य खुद तय करें।मेरा मानना है ऐसा करके हम स्वयं को उस सर्वोच्च शिखर पर विराजमान कर सकते है जहाँ हम खुद को गौरवान्वित महसूस कर सकेंगे।आत्मनिर्भरता ही मानव मूल्यों की सशक्तता है, में आशीर्वाद चाहूँगा मेरी श्रधैय माँ वागिशवरी से कि मुझे भी ऐसे दिव्य गुणों से आलोकित करें।

Friday 20 March 2015

दूसरी-नज़र: सामयिक चिंतन

ज्यादा समय नहीं बीता जब देश को मोदिमय मोह से घिरा देख सकते थे, इसके कारणों ओर तर्कों में ताकि-झांकी की जाएं तो एक शब्द ही मुख्यतः उभरके आता हैं 'परिवर्तन'।
ये परिवर्तनों का सफ़र किस दिशा ओर दशा की तरफ़ बढ़ रहा हैं उसका एक पहलू ये भी हैं (मेरे ख्याल से इसे हम दरकिनार करके 'मोदी के अंध भक्त' ही कहलाएंगे)।

ऐसे ही कुछ पहलुओं पर नज़र डाल रहे हैं P चिदंबरम।

Monday 16 March 2015

बदलते मूल्य ओर दरकते कदम

आग नहीं अंगारों सा फौलादी ख्याल जब दिल में हिलोरें ले रहा हो। अरे ये तो होना ही न ! बगल में जब जादुभरी लड़की हो।

Sunday 15 March 2015

ध्येय



 तुम जो मुस्कुरा रहे हो
क्या गम हैं जो छुपा रहे हो.....।

सत्य ही जीवन हैं सत्य ही सुख हैं सत्य ही आत्मा हैं।
किस्सा मशहूर हैं कि राजा हरिश्चंद्र ने सपने में देखा कि अपना सारा राजपाठ एक ब्राह्मण को दानसकर दिया था अगले ही दिन वह ब्रहामण आ पहुँचा तो उसे रत्न-जड़ित सिहासन पर बैठा खुद आम आदमी हो गये। वह ब्रहामण ओर कोई नहीं था खुद विश्वामित्र थे जो हरिश्चंद्र की ख्याति सुनकर कि जिनके लिये सत्य ही सब कुछ हैं, उसकी परीक्षा लेना चाहते थे।

 जीभ पर नियंत्रण नहीं होना
-जीभ पर नियंत्रण नहीं होना पहली परेशानी है। खाते समय और बोलते समय जीभ पर नियंत्रण रखा जाए तो हम कई प्रकार की परेशानियों से बच सकते हैं। खाने-पीने में स्वाद की अपेक्षा सेहत को तरजीह देनी चाहिए। ऐसी चीजों का सेवन न करें जो किसी भी प्रकार से स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं। साथ ही, बोलते समय ऐसे शब्दों का उपयोग न करें, जिनसे दूसरों को बुरा लग सकता है

-परेशानियों से बचने के लिए अच्छे विचारों का होना बहुत जरूरी है। गलत सोच से मन की शांति भंग हो जाती है और अशांत मन से किए गए कामों में सफलता नहीं मिल पाती है। विचार हमारे भीतर चलते ही रहते हैं, विचारों के प्रवाह में हमारी शांति बह जाती है। अत: विचारों पर नियंत्रण होना बहुत जरूरी है।
तीसरी बात- अधिक क्रोध करना

-दूसरी बड़ी परेशानी है क्रोध। अक्सर बाहर से तो हम क्रोध को नियंत्रित कर लेते हैं, लेकिन भीतर से यह कई बीमारियों को जन्म दे जाता है। क्रोध इंसान का सबसे बड़ा शत्रु है और इसके आवेश में हम सही-गलत का भेद भी भूल जाते हैं। क्रोध पर नियंत्रण कर लिया जाए तो जीवन में शांति और आनंद आ सकता है। इसे नियंत्रित करने के लिए ध्यान-योग और आध्यात्म की मदद ली जा सकती है।